Saturday, May 28, 2011

ये दिल

कि दिल चाहता है तुमको, तुम्ही को

तो गर तुम चाहो तो इसकी खता क्या

कि दिल चाहता है जो तुमको, तुम्ही को

तो गर तुम समझो तो इसको पता क्या


आई थी दिल कि वो बात इस जुबान पे

जो तुने सुनी ना तो इसकी खता क्या

धड़कता रहा ये जो तेरे लिए सिर्फ

वो धड़कन सुनी ना तो इसकी खता क्या


ना जाने ये दिल वो मंदिर, वो मौला

तुम्ही को अपना खुदा मानता है

ना समझे ज़माने कि मुश्किल जरा भी

तुम्ही को अपना सदा मानता है


जो नहीं सामने इन निगाहों के है तू

वो दर्द भी ये दिल खूब जानता है

जो छुपाये है ये दिल दर्द इंतज़ार का

वो दर्द भी ये दिल बहुत खूब जानता है


ये सोचे है हरपल जो तुमको तुम्ही को

क्या सोचे तू ये दिल कहाँ जानता है

तू क्यूँ इसकी नादानियों को न समझे

ये दिल सिर्फ तेरी ख़ुशी चाहता है